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Tuesday, December 13, 2011

Jai Hanuman Ji

बाल समय रवि भक्षि लियो तब

तीनहुं लोक भयो अंध्यिरों
ताहि सो त्रास भयो जग को
यह संकट काहू से जात न टारो
देवन आन करी विनती तब
छाड़ दियो रवि कष्ट निवारो
को नहीं जानत है जग में कपि
संकट मोचन नाम तिहारो।
अर्थात खेल ही खेल में जब बालक हनुमान ने सूर्य को फल समझ कर मुंह में दबा लिया, तो तीनों लोगों में अंधकार छा गया। हाहाकार मच गई, किसी से यह संकट दूर नहीं हुआ तो देवतागण भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु सारा मामला समझ कर हनुमान जी के पास आए उनकी स्तुति की तब जाकर उन्होंने सूर्य को मुंह से बाहर निकाला और तीनों लोकों का अंधकार खत्म हुआ। हनुमान जी के पठन पाठन का प्रसंग भी काफी दिलचस्प है। इनके पिता पवन ;वायु ने बालक हनुमान को वेदों का पठन पाठन कराने के लिए सूर्य देव से आग्रह किया, लेकिन हनुमान जी की बाल क्रीडा के भुक्त भोगी सूर्य ने कहा कि मेरा ;सूर्यद्ध स्वभाव स्थिर नहीं बल्कि चलायमान हैं। अतः हनुमान जी को चलायमान अवस्था में वेदोपाठ कराना असंभव है। मेरे स्वभाव में स्थिरता नहीं होने से नियमित पढ़ाई नहीं हो सकती। यह देखकर हनुमान जी आकाश मार्ग से सूर्य की ओर मुंह करके पैरों से पीछे की ओर प्रसन्न मन से बानर के बच्चे के समान गमन कर पढ़ने लगे। उनके इस प्रयास से पाठ्यक्रम में किसी प्रकार का भ्रम नहीं हुआ। उनके इस आश्चर्यजनक खेल को देखकर इन्द्र, ब्रहमा, विष्णु, महेश आदि देवों की आंखें चकाचैंध् हो गई। अर्थात इन देवों ने मन में हनुमान जी की इस क्रीडा से घबराहट हो गई। वे विचार करने लगे कि क्या ये वीरता के भंडार हैं या वीर रस हैं, अथवा स्वयं धैर्य और साहस है। तुलसीदासजी कहते हैं कि देवता इस दुविधा में हैं कि क्या हनुमान जी का शरीर इन सबका सार रूप धरण किये हुए हैं। बालक हनुमान की इस लीला के बाद ही सूर्य देव ने इन्हें वेद शास्त्रों का अध्ययन शुरू कराया। वेद शास्त्रों का ज्ञान पूरा होने पर सूर्य ने गुरू दक्षिणा के रूप में अपने पुत्र सुग्रीव की रक्षा का वचन मांगा, तो न केवल सुग्रीव को भाई बाली के कोप से बचाया बल्कि उन्हें प्रभु श्रीराम से मिला दिया अर्थात सीध् परमात्मा से मिला दिया। गोस्वामी तुलसीदास जी जीवन अनुभव की बात कहते हैं कि भयानक रावण रूपी दरिद्रता को नष्ट करने के लिए पवनपुत्र का तेज तीनों लोकों में विश्राम गृह है। सेवा में दूसरों के हित के लिए सतर्क रहते हुए आप ज्ञानी, गुणवान तथा बलवान हैं इन गुणों का अधिकारी ही सेवारत होता है।

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